अण्डा - बाबा नागार्जुन

बाबा नागार्जुन अपनी तेजस्वी रचनाओं और उनमें निहित देशव्यापी समस्याओं के कुशल चित्रण के लिए जाने जाते हैं. यहाँ प्रस्तुत है पचास के दशक में रची उनकी एक रचना "अंडा"



अण्डा - बाबा नागार्जुन

पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया,बाकी रह गये चार

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गये वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गये दो

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया एक

एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झन्डा
पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा

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6 comments:

  1. रवि कुमार, रावतभाटा Says:

    यह जब भी पढता हूं...
    हर बार वही आनंद तारी हो जाता है...

    साथ ही उनकी और भी चुटहिया रचनाएं याद आने लगती हैं...

    आभार...

  2. Pushpendra Singh "Pushp" Says:

    बहुत ही बेहतरीन रचना
    बहुत बहुत आभार

  3. sandhyagupta Says:

    Is kavita ko padhane ke liye aabhar.

  4. VOICE OF MAINPURI Says:

    नया अनुभव...शानदार रचनात्मकता.

  5. बवाल Says:

    बेहतरीन रचना पढ़वाई स्मार्ट जी। देखिए अण्डे का फ़ण्डा उस ज़माने में भी था हा हा।

  6. rajendra sharma Says:

    bachcho ko sunaai achchi lagi